वीरसावरकर एक दूरदर्शी स्वतंत्रता सेनानी
देश के एक एसे स्वतंत्रता सेनानी जिन्होने अपनी दूरदर्शिता से समाज को और अन्य अपने जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को दिशा दिखाई और देश वासियों के जीवन मे स्वतंत्रता की लौ जगाने का प्रयास किया एसे वीरपुरुष जिनका नाम विनायक दामोदर सावरकर था। उन्हें वीरसावरकर के नाम से प्रसिद्धि मिली अब लोग उन्हें इसी नाम से पहचानते हैं। अभी हाल ही में हमने उनकी 138वी जयंती बनाई थी। वीरसावरकर अपने जीवन में स्वतंत्रता सेनानी के साथ साथ एक दूरदर्शी भी थे।
वीरसावरकर की दूरदर्शिता
वीररसावरकर अपने जीवन में बहुत दूरदर्शी थे अगर उनकी दूरदर्शिता की बात करे तो उन्होंने मुस्लिम लीग की "टू नेशन थ्योरी" के बारे में अपनी राय रखते हुए कहा था कि यह विचार आने वाले समय में देश के लिए बहुत घातक साबित होगी । आखिरकार उनकी यह बात सही साबित हुई जब देश मजहब के नाम पर बंट गया और मुस्लिम देश के रूप में पाकिस्तान (भारत विरोधी राष्ट्र)का उदय हुआ। इसके दुष्परिणाम आज तक देखने को मिल रहे हैं। आज भी आए दिन पड़ोसी देश पाकिस्तान भारत की सीमा पर सीज फायर का उलंघन करता रहता है और पाकिस्तान की तरफ से लगातार घुसपैठ की भी खबर सामने आती रहती है। लेकिन समय समय पर भारतीय सेना की तरफ से उन्हें मुहतोड़ जवाब भी मिलते रहते हैं।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस को दिया परामर्श
एक बार वीरसावरकर से सुभाषचन्द्र बोस (नेताजी) मिलने आए थे उस समय सावरकर जी ने उन्हें दूरदर्शितापूर्ण परामर्श दिया था और उनसे कहा था
बोस तुम अंग्रेजो के राज में कैद में रहने को नही जन्मे हो। तुम देश से बाहर जाकर अपनी सेना बनाकर देश को स्वतंत्रता दिलाने के वास्ते जन्मे हो, देश की आजादी के लिए अपनी प्रतिभा का प्रयोग करो
जिसके बाद नेताजी ने ऐसा ही किया और आगे चलकर उन्होंने जापान और जर्मनी जाकर आजाद हिन्द सेना का गठन किया। इस सेना ने अपनी शक्ति और पौरुष के बल पर भारत को प्रथम स्वतंत्र कराने में अहम भूमिका निभाई।
अंडमान जेल के जेलर को दिया जवाब
सावरकर को अपने जीवन मे जब दो जन्मो का कारावास काटने को मिला था। तब उन्हें अंण्डोमन की जेल में रखा गया था। वे बहुत दिनों तक ये नहीं जानते थे कि उनके भाई भी इसी जेल में सजा काट रहे हैं। उसी वक्त एक बार जेलर ने उनसे कहा कि हिन्दुराष्ट्र और स्वतंत्र भारत का सपना देखने वाले भाई परमानन्द को तो मैने ठीक कर दिया है तुझे भी ठीक कर दूंगा। वैसे भी तुझे ठीक करना आसान है क्योंकि तू पतला दुबला सा है। लेकिन सावरकर ने उसे तुरन्त उत्तर दिया और कहा। कि तुम देखना में यहाँ से जीवित ही बाहर जाऊँगा और मेरे जीवनकाल में मेरी आखों के सामने अंग्रेज भारत से चले जायेंगे। आखिर ऐसा ही हुआ भी और 15 अगस्त 1947 के दिन भारत पूर्ण रूप से आजाद हो गया। उनकी दूरदर्शी भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई।
देश की स्वतंत्रता के लिए सभी ने अपने अपने प्रकार से लड़ाई लड़ी वैचारिक विभेद होने के बाद भी उधर सावरकर के दिखाए हुए रास्ते पर चलके नेताजी युद्ध और आक्रमकता से ब्रिटिश सरकार की नींव पर वार कर रहे थे और इधर ग़ांधी जी ने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों की साख को हिला रखा था। एक तरफ गाँधी अपनी अहिंसक नीतियों से आजादी दिलाने का प्रयास कर रहे थे तो दूसरी तरफ सावरकर और नेताजी दोनों अपनी डिप्लोमेटिक और अन्य नीतियों से भारत को आजाद कराने का कार्य कर रहे थे। भले ही इन सभी की देश को आजाद कराने की नीतियां अलग थी और वह अपनी अपनी नीतियों से आजादी दिलाने के लिए प्रयास कर रहे थे। गांधी और सावरकर के भले ही रास्ते अलग अलग होंगे पर मंजिल एक ही थी दोनों का एक ही उद्देश्य था वो था भारत को अंग्रेजो (ब्रिटिश) हुकूमत से आजादी दिलाना।वास्तव में सावरकर एक दूरदर्शी सच्चे देशभक्त थे उनके जीवन की घटनाएं और उनकी आक्रामकता सदैव नई पीढ़ी में एक नया जोश भरती रहेगी।
-: केशव ओझा
स्वतंत्र लेखक